बिलकिस के दोषियों को उम्रकैद की सजा, फिर 14 साल में कैसे रिहा हुए? SC का सवाल

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सुप्रीम कोर्ट में कल बिलकिस बानो मामले में सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार को कुछ कठिन सवालों का सामना करना पड़ा. जस्टिस बीवी नागरत्ना और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने गुजरात सरकार से पूछा कि दोषियों को मौत की सजा हुई थी, जिसे बाद में उम्रकैद में बदला गया, ऐसे में वे 14 साल की सजा काटकर कैसे रिहा हुए? फिर 14 साल की सजा के बाद रिहाई की राहत बाकी कैदियों को क्यों नहीं दी जा रही? इस मामले में सेलेक्टिवली इन दोषियों को पॉलिसी का लाभ क्यों दिया गया? शीर्ष अदालत 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ बलात्कार और उसके परिवार की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए लोगों की असामयिक रिहाई पर याचिकाओं की एक श्रृंखला पर सुनवाई कर रहा है.

शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से कहा, ‘कठोर अपराधियों को 14 साल के बाद रिहा कर उन्हें सुधरने का मौका देने वाला यह नियम कहां तक ​​अन्य कैदियों पर लागू किया जा रहा है? इस नीति को कुछ चुनिंदा कैदियों पर ही क्यों लागू किया जा रहा है? सुधार और पुन: एकीकृत होने का अवसर सभी को दिया जाना चाहिए. हमारी जेलें क्यों भर रही हैं? हमें डेटा दें.’ अदालत ने यह भी सवाल किया कि बिलकिस बानो के दोषियों के लिए जेल एडवाइजरी कमेटी का गठन किस आधार पर किया गया? जिससे राज्य को विवरण प्रदान करने का आदेश दिया गया. इसमें यह भी पूछा गया कि जब मुकदमा गोधरा की अदालत में नहीं चलाया गया तो उसकी राय क्यों मांगी गई?

पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर सभी 11 दोषियों को रिहा किया गया थापिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर रिहा किए गए 11 लोगों को महाराष्ट्र की एक अदालत ने सजा सुनाई थी. जिस न्यायाधीश ने उन्हें दोषी पाया, उन्होंने राज्य के इस सवाल पर भी नकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी कि क्या दोषियों को रिहा किया जाना चाहिए. मामले की सुनवाई गुजरात से महाराष्ट्र स्थानांतरित कर दी गई, क्योंकि यह महसूस किया गया कि राज्य में निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं होगी. गौरतलब है कि 2002 में गोधरा स्टेशन पर जलती हुई साबरमती एक्सप्रेस में 59 कार सेवकों की मौत के बाद, राज्य के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे.

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